तिथि: हनुमान जयंती 4अप्रैल.2024, बुधवार को मनाई जाएगी।
समय: हनुमान जयंती का पारंपरिक उत्सव आमतौर पर सुबह से ही शुरू होता है।
उत्सव: हनुमान जयंती को भगवान हनुमान के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। लोग मंदिरों में जाकर हनुमान जी की मूर्ति की पूजा और अर्चना करते हैं। विशेष भजन गाये जाते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। इस दिन के अवसर पर लोग अन्नदान, चादर और पुष्प चढ़ावा करते हैं।
यह हिंदू पर्व भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धांजलि और भक्ति का एक महत्वपूर्ण दिन है।
हनुमान जयंती एक प्रमुख हिंदू उत्सव है जो भगवान हनुमान के जन्मदिन पर मनाया जाता है। यह उत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के 15 दिन बाद आती है।
हनुमान जयंती के उत्सव में लोग भगवान हनुमान की पूजा, अर्चना, और भक्ति करते हैं। विशेष रूप से मंदिरों में भगवान हनुमान की मूर्ति पर अभिषेक किया जाता है और विभिन्न भजन गाए जाते हैं, जैसे कि हनुमान चालीसा।
उत्सव के दिन लोग अन्नदान, चादर, पुष्प और निर्धारित धन्य पदार्थों की प्रसाद वितरित करते हैं। कई स्थानों पर हनुमान जयंती की रात्रि को आरती, रामलीला, और धार्मिक कथाओं का आयोजन किया जाता है।
हनुमान जयंती का उत्सव भक्तों के लिए एक प्रतिष्ठान्वित और धार्मिक महोत्सव है, जो उनके अंदर भक्ति और श्रद्धा को और भी बढ़ाता है।
हनुमान जी का जन्म हनुमान चालीसा में वर्णित है, जो तुलसीदास जी द्वारा रचित है। हानुमान जी के जन्म का कथा बहुत ही प्रसिद्ध है और उसके अनुसार:जनकपुरी में राजा केशरी और रानी अंजनी का निवास था। रानी अंजनी अत्यंत भक्तिभाव से भगवान शिव की उपासना करती थीं। उन्हें एक दिन भगवान शिव की कृपा प्राप्त हुई और उन्हें एक वरदान मिला कि उनका पुत्र हनुमान भविष्य में महान शक्तिशाली होगा।
एक दिन, सूर्य उगने से पहले, रानी अंजनी ने अशोकवनिका में दर्शन के लिए जाने का निश्चय किया। अशोकवनिका रावण की रानी मंदोदरी के उपदेशन से रानी अंजनी को अशोकवनिका में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, क्योंकि यहां कोई देवी-देवता नहीं थे। इसलिए रानी अंजनी ने अपने पति के साथ सूर्योदय के पहले उत्तरायण के समय जाने का निश्चय किया।
जब वे वानर सेना के साथ आशोकवनिका में आए, तो वहां रानी सीता को देखकर भावुक हो गईं। उन्होंने भगवान हनुमान को उनके लिए प्रणाम किया और चाहा कि उन्हें भगवान राम की सेवा करने का अवसर मिले। भगवान हनुमान ने उनके प्रार्थना को सुनते हुए उन्हें वर दिया कि उनका पुत्र होगा जो बहुत बलशाली, शक्तिशाली, और धर्मात्मा होगा।
इसके बाद, रानी अंजनी की कृपा से भगवान शिव ने अपने स्वयं के रूप में अवतरित होकर भगवान हनुमान का जन्म लिया। इसलिए हनुमान जी को पवनपुत्र और भगवान शिव के रूप में भी जाना जाता है।
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