श्री राधा रानी की जय बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय श्री कृष्ण भगवान की जय :- श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज पूरी जानकारी
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज : मित्रों, वृन्दावन में रहने का अर्थ है भगवान के चरणों में शरण पाना, वृन्दावन का दूसरा नाम मोक्ष है, राधा रानी की कृपा के बिना यहाँ रहना संभव नहीं है, जो भक्त राधारानी को प्रसन्न कर लेता है, उसे ही यहाँ रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है वृन्दावन. ऐसा कहा जाता है कि कई जन्मों तक अच्छे आचरण और भगवान की सेवा करने के बाद ही कोई व्यक्ति वृन्दावन में निवास कर सकता है।
जब बात राधा रानी की कि जाती है तो राधा वल्लभ संप्रदाय के महान संत श्री प्रेमानंद जी महाराज का मन में स्मरण होता है। मेरा स्वयं का मानना है कि इनके मुखारविंद से निकले हुए शब्द मुर्दे को भी जीवित कर दें । जो व्यक्ति इनके शब्दों को और कथा को मन से लगाकर सुनता है अवश्य ही राधारानी श्रीजी मिल जाते हैं।
मित्रों पूज्य प्रेमानंद जी महाराज जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ और उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था । महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में हुआ था। कानपुर शहर के पास एक गांव है उसका नाम सरसों वहां का जन्म हुआ था|इनके पिता का नाम शंभू पांडे था और इनके दादा एक सन्यासी थे । इनके पिता ने भी बाद में सन्यास को स्वीकार किया था इनकी माता बहुत धर्म परायण थी महाराज जी के माता-पिता के हृदय में संतों के प्रति बहुत आदर सत्कार था वह सदैव संतों की सेवा करने में रुचि रखते थे । इनके घर का माहौल अत्यंत शुद्ध भक्ति भाव से भरपूर था महाराज जी के बड़े भाई संध्याकाल में मिलते भागवत जी का पाठ किया करते थे जिसे पूरा परिवार बैठकर सुनता था ।
महाराज जी ने अपनी छोटी उम्र में ही चालीसा का पाठ करना आरंभ कर दिया था । और पांचवी कक्षा में पहुंचते-पहुंचते उन्होंने गीता प्रेस की सुख सागर का पढ़ना शुरू कर दिया था । महाराज जी बचपन से ही जीवन के उद्देश्य के ऊपर सवाल उठाते थे वह कहते थे कि माता-पिता का प्रेम स्थाई है या अस्थाई है अगर स्थाई है तो इतना मोह क्यों इसी तरह की कुछ विचार थे जो उनके मन में आते थे कि क्या स्कूल में पढ़ाई जाने वाली विद्या उनको उनके लक्ष्य की प्राप्ति करा सकती है अगर नहीं करा सकती तो इसे पढ़ने का क्या फायदा ।
महाराज जी के जप का आरंभ
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपना घर 13 साल की उम्र में छोड़ दिया था | उन्होंने सन्यासियों से अपनी दीक्षा ली और उनका नाम प्रेमानंद ब्रह्मचारी रखा गया , कुछ देर बाद प्रेमानंद महाराज जी ने सन्यास भी स्वीकार कर लिया कहते हैं प्रेमानंद महाराज ने जो स्नेहा स्वीकार करें तब उनका नाम आनंद शव रखा गया महाराज जी का अधिकांश जीवन गंगा नदी के तट पर ही बीता वह सदैव गंगा जी के किनारे ही रहते थे , क्योंकि उन्होंने कोई भी आचरण का जीवन पद्धति को स्वीकार करना सही माना
श्री प्रेमानंद जी महाराज हर मौसम में अपने आप को ढाल लिया था वदन पर थोड़े ही कपड़े पहनते थे और सदैव गंगा मैया के साथ साथ रहते थे और गंगा मैया के जल का आचमन करते थे और जो दीक्षा में रोटी मिल जाती थी उसका सेवन करते हैं जितनी मर्जी ठंड पड़ती हो पर महाराज जी गंगा जी में तीन बार डुबकी अवश्य लगाते थे महाराज जी बहुत दिनों तक भूखे प्यासे भी रहते थे और वहां वास करते थे जैसा खाने पाने को मिलता था उसको स्वीकार कर लेते थे लेकिन वह ईश्वर की भक्ति में लगे रहते थे उनका स्मरण भगवान से नहीं छूटता था।
कहते हैं सन्यास मार्ग में ही प्रेमानंद जी महाराज को भगवान सदाशिव के स्वयं दर्शन हुए हैं महाराज स्वयं कहते हैं कि भगवान शिव की कृपा से ही वह वृंदावन की रास्ते पर आए थे कहते हैं महाराज जी एक दिन बनारस में एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे तभी उनको राधा कृष्ण की महिमा का आभास हुआ । उन्होंने एक संत की प्रेरणा से 1 महीने के लिए रास्ता खुद देखने की इच्छुक हुए ।
महाराज जी के गुरु जी का नाम श्री गौरंगी शरण जी महाराज है जिन्होंने महाराज जी को सेंचरी भाव के प्रति प्रेरित किया ।
महाराज जी ने 10 वर्षों तक अपने गुरु की सेवा की महाराज जी के गुरु जी ने उन्हें जो भी कार्य दिया उन्होंने वह कार्य बड़ी लगन और दृढ़ता से किया कहते हैं महाराज जी के गुरु जी उन पर सदैव खुश रहते थे महाराज जी ने अपने गुरु की बहुत निष्ठा से सेवा की गुरु कृपा और वृंदावन की कृपा से उनमें से सेचरी भाव उत्पन्न हो गया और श्री राधा रानी के चरणों के प्रति उनके हृदय में प्रति भक्ति अथवा श्रद्धा उत्पन्न हो गई
महाराज जी को जो मिल जाता है वह मैं उसको ग्रहण कर लेते हैं। उनकी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है महाराज जी अपने शिष्य अथवा वृंदावन वासियों से बहुत प्रेम करते हैं। महाराज जी के मुखारविंद से निकले हुए वचन अथवा कथा बड़े से बड़े पापी को भी धर्म की रास्ते पर प्रेरित करती हैं इनकी वाणी में नाम महिमा विशेष जोर दिया जाता है ।हम ऐसे महान संत के श्री चरणों में बारंबार प्रणाम करते हैं और यह भी आशा करते हैं कि इन महान संतों की कृपा प्रत्येक नागरिक पर सदैव बरसती रहे ।
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