इतनी कम उम्र में घर छोड़कर संन्यासी बनने वाले 60 साल के संत महाराज का जीवन , जानिए पूरी यात्रा


उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन के महाराज गोविंद शरण जी महाराज, जिन्हें 'प्रेमानंद जी' के नाम से जाना जाता है, इन दिनों सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। प्रेमानंद को गुरु जी महाराज या प्रेमानंद जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। गोविंद शरण जी महाराज एक भारतीय धार्मिक गुरु, हिंदू उपदेशक और कथावाचक हैं। वह अपनी आध्यात्मिक मान्यताओं और उपदेशों के लिए जाने जाते हैं। गोविंद शरण जी महाराज वर्तमान में वृन्दावन के आश्रम में रहते हैं।


उनकी दोनों किडनी कई सालों से फेल है। वो पूरे दिन डायलिसिस पर रहते हैं। प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में सरसौल के अखरी गांव में सात्विक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असल नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डे था। इनके दादा जी संन्यासी थे। इनके पिता शंभु पाण्डे भी आध्यात्मिक विचारों वाले थे और किसान थे। बचपन से ही प्रेमानंद जी चालीसा का पाठ करते थे। पांचवी कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने स्कूल में भौतिकवादी ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर सवाल किया था। आखिरकर जीवन का असल कारण तलाशने के लिए उन्होंने एक दिन रात को अपना घर त्याग दिया। उस वक्त वह सिर्फ 13 साल के थे। घर को छोड़ने के बाद प्रेमानंद जी महाराज वाराणसी आ गए। यहां गंगा किनारे बैठकर कर वह दिन रात भगवान शिव की भक्ति करने लगे। 


दान-दक्षिणा में जो कुछ मिल जाता, उसको खाकर अपना पेट भर लेते थे और किसी आश्रम में सो जाते थे। वाराणसी पहुंचकर उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य शुरू कर दिया था। उस वक्त लोग उन्हें आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी के नाम से जानते थे। वाराणसी में रहते हुए आगे चलकर उन्होंने संन्यास ले लिया। जिसके बाद महावाक्य स्वीकार करने पर उन्हें स्वामी आनंदाश्रम नाम मिला। संन्यासी बनने के बाद उन्हें मां गंगा को अपनी दूसरी मां मान लिया और वाराणसी से हरिद्वार तक गंगा घाटों पर घूमते रहते थे और भक्ति में लीन रहते थे। अपने कई प्रवचन में प्रेमानंद जी ने बताया है कि वाराणसी में रहने के दौरान वह कभी एक जगह टिक कर नहीं रहे। ना ही उन्होंने खाने-पीने और कपड़ों की चिंता की। 


वाराणसी में वह हर रोज पेड़ के नीचे ध्यान लगाते थे। इसी दौरान वह श्री श्यामा श्याम की कृपा से वृंदावन की महिमा की ओर आकर्षित हुए। इसी दौरान उन्हें एक संत मिले जो, जिन्होंने प्रेमानंद जी को रास लीला में शामिल होने को कहा। ये रास लीला स्वामी श्री श्रीराम शर्मा की ओर से आयोजित की जा रही थी। प्रेमानंद जी महाराज ने एक महीने तक रास लीला में हिस्सा लिया। हर दिन एक महीने तक वह सुबह श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला और रात में श्री श्यामा-श्याम की रास लीला देखते थे। इन लीलाओं से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने वृंदावन जाने का सोचा। कहा जाता है कि ये एक ऐसा वक्त था जब प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन आने के लिए व्याकुल हो उठे थे। जिसके बाद श्री नारायण दास भक्तमाली के एक शिष्य की मदद से महाराज जी मथुरा जाने वाली ट्रेन में बैठ गए। 



बिना टिकट वह इस ट्रेन में बैठकर वृंदावन पहुंच गए। वृंदावन पहुंचने के बाद उनका शुरुआती वक्त वृंदावन की परिक्रमा और श्री बांके बिहारी के दर्शन में बीतता था। बांके बिहारी जी के मंदिर में एक संत ने उन्हें श्री राधावल्लभ मंदिर जाने की भी सलाह दी। श्री राधावल्लभ मंदिर पहुंचने के बाद यहां वह घंटों राधा रानी को देखते रहे। इसी दौरान मंदिर में मौजूद संत गोस्वामी जी ने उनपर ध्यान दिय। जिसके बाद महाराज जी राधा बल्लभ संप्रदाय में जाकर शरणागत मंत्र लिया। कुछ दिनों बाद महाराज जी अपने सतगुरु श्री गौरांगी शरण जी महाराज को मिले। उन्होंने अपने गुरु की 10 सालों तक सेवा की। फिलहाल प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम परिक्रमा मार्ग, पुरानी कालीदहा, वृंदावन में है। 


महाराज जी ने अपने एक सत्संग में बताया है कि पिछले 17 साल से उनकी दोनों किडनी खराब हैं। इलाज न करा पाने के कारण उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी का नाम कृष्णा रखा। फिलहाल उनका हर दिन डायलिसिस होता है। फिलहाल उनकी उम्र 60 साल है. आज भी वे प्रतिदिन प्रातः 3 बजे वृन्दावन की 10 से 12 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं।


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